जो गुजरे हुए कल के गीत नहीं गाता और आने वाले कल के हवाई किले नहीं बांधता। बस आज और इसी पल को बेहतरीन बनाने के प्रयास में लगा रहता है। सफलता उसके कदम चूमती है। वह कामयाबी के शीर्ष पर काबिज रहता है। इसलिए वर्तमान को प्रेजेंट यानी उपहार कहते हैं। इस उपहार को हासिल कीजिए और सफलता के सफर में बढ़ निकलिए। कैसे? आइए इस सफर के शुरुआत हम करवाते हैं।
हर ऐतिहासिक कामयाबी की शुरुआत असफलता से होती है। इसलिए घबराएं नहीं। मानसिक दबावों से बाहर निकलें और नजरिया बनाएं कि आपको हर हाल में सफल होना है। सफलता से कम आपको कुछ भी मंजूर नहीं है। फिर देखिए आपको सफलता कैसे नहीं मिलती।
प्रयोगों से घबराएं नहीं, चाहे जितने प्रयोग असफल हो जाएं। याद रखिए, अगले किसी भी प्रयोग में सफलता मौजूद होगी। जब घबराहट होने लगे तो थॉमस अल्वा एडीसन को याद कर लें जिसे सैकड़ों असफल आविष्कारों के बाद बिजली का बल्ब बनाने में सफलता मिली थी।
क्या आप जानते हैं, सभी के जीवन में एक समय ऐसा आता है, जब सभी चीज़े आपके विरोध में हो रही हों।
आप जो करना चाह रहे है उसका उल्टा हो रहा हो, आप निराश हो रहे हों..
लेकिन क्या आप जानते हैं.. सही मायने में
विफलता सफलता से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है
इतिहास में जितने सफल बिसनेसमैन, साइंटिस्ट, महापुरुष आदि हुए हैं वे सभी जीवन में सफल होने से पहले कई बार विफल हुए हैं। हर किसी ने हार का सामना किया है।
जब आप कुछ काम कर रहे हो तो ये ज़रूरी नहीं की सब कुछ आपके अनुसार ही होगा, सही ही होगा। परन्तु अगर आप इस वजह से प्रयास करना छोड़ देंगे तो आप कभी सफल नहीं हो सकते।
क्या आप जानते हैं, हेनरी फोर्ड विश्वप्रसिद्ध फोर्ड मोटर कंपनी के मालिक अपनी मोटर कंपनी के सफल होने से पहले पांच अन्य बिज़नेस में फेल हुए थे।
और अगर विफलता की बात करें तो थॉमस अल्वा एडिसन का नाम सबसे पहले आता है, पहचानते हो न.. जी हाँ लाइट बल्ब का आविष्कार करने वाले एडिसन।
लाइट बल्ब बनाने के पहले उनके लगभग १००० प्रयोग विफल हुए थे।
और अपनी थ्योरी और सिद्धांतो के बल पर दुनिया में सबसे बड़े साइंटिस्ट कहलाने वाले अल्बर्ट आइन्स्टीन, भी ४ साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं पाते थे और ७ साल की उम्र तक निरक्षर थे।
लोग उन्हें दिमागी रूप से कमज़ोर मानते थे।
पर देखिये आज अल्बर्ट आइन्स्टीन को कौन नहीं जानता।
अब आप ही सोचिये, अगर पांच बिज़नेस में घाटा होने और क़र्ज़ में डूबने के कारण हेनरी फोर्ड निराश होकर बैठ जाते,
या एडिसन ९९९ असफल प्रयोगो के बाद छोड़ देते और आइन्स्टीन भी खुद को दिमागी कमज़ोर मान के बैठ जाते तो क्या होता..??
क्या होता..??
हम कितनी ही महान प्रतिभाओ और अविष्कारों से अनजान रह जाते.
इसलिए हमेशा ध्यान रहे असफलता सफलता से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है
क्योंकि सफल वही हुआ है जो पहले कई दफा असफल हुआ है.